भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में ग्रह और नक्षत्रों का बड़ा महत्व है। इनके भिन्न-भिन्न तरह के प्रभाव होते हैं। चंद्रमा की किरणें भी अलग-अलग नक्षत्रों में अलग-अलग रासायनिक प्रभाव छोड़ती हैं। बिहार के वैज्ञानिकों की ओर से नैनोसाइंस के जरिए ताजा अध्ययन इसे पुष्ट कर रहा है।
बिहार के तीन वैज्ञानिकों और उनकी टीम के जलकुंभी भस्म पर किये गए हालिया अध्ययन में कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। यही नहीं जलकुंभी भस्म प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में प्रभावी साबित होगा। रिसर्च में यह बात सामने आई कि पुष्य नक्षत्र में चंद्रमा के प्रकाश में जलकुंभी भस्म का आकार सूक्ष्म से भी अतिसूक्ष्म 26 नैनोमीटर तक हो जाता है।
वहीं रोहिणी नक्षत्र में इस जलकुंभी भस्म का आकार
लगभग 55 नैनोमीटर हो जाता है। यानी चंद्रमा के किरणों का अलग-अलग नक्षत्र में जलकुंभी भस्म पर अलग-अलग प्रभाव होता है। इस अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि इस भस्म का उष्म गुण इलेक्ट्रॉनिक्स मैटीरियल जैसा है और इनसे प्रकाश का उत्सर्जन भी होता है। पहली बार जलकुंभी भस्म में प्रकाश के तत्व की मौजूदगी का दावा किया गया है।
पेटेंट और उद्योग विकसित करने की दिशा में काम
आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के डॉक्टर राकेश कुमार सिंह ने बताया कि इसे पेटेंट कराने के साथ-साथ जलकुंभी भस्म आधारित उद्योग विकसित करने की दिशा में जल्द काम शुरू होगा। इस शोध को 13 अगस्त को यूनाइटेड किंगडम के आईओपी साइंस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया जा चुका है। यह जल्द ही यूनाइटेड किंगडम के जर्नल और फिजिक्स में प्रकाशित होने वाला है।
जलकुंभी भस्म के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में उपयोग की बढ़ी संभावनाएं
इस शोध का सबसे बड़ा फायदा चिकित्सा क्षेत्र को होगा। यह पुष्ट तथ्य है कि नैनोपार्टिकल का आकार जितना छोटा होता है, उसकी चिकित्साशास्त्र में मारक क्षमता उतनी ही होती है। जलकुंभी भस्म के सूक्ष्मतम रूप से अब प्रोस्टेट कैंसर के लिए बेहद प्रभावी दवाओं का निर्माण हो सकेगा।
जलकुंभी भस्म के हर्बल होने की वजह से इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। साथ ही इस भस्म में प्रकाश और ऊष्मा के तत्व मौजूद होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स मैटेरियल जैसा इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी जलकुंभी भस्म से भी विद्युत बल्ब की तरह बल्ब तैयार किया जा सकता है।
शोध में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. राकेश बताते हैं कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इससे ऋषि-मुनियों द्वारा गई बताई, अपनाई गई चिकित्सा प्रणाली के महत्व का भी पता चलता है।
आर्यभट्ट ज्ञान विवि के संस्थापक कुलपति एसएन गुहा व डॉ. जितेंद्र सिंह के निर्देशन में हुआ शोध
यह रिसर्च आर्यभट्ट ज्ञान विवि के संस्थापक कुलपति प्रो. एसएन गुहा व महावीर कैंसर सस्थान के पूर्व निदेशक जितेंद्र कुमार सिंह के निर्देश में हुआ है। बेगूसराय के आयुर्वेदिक कॉलेज के डॉ. दिनेश प्रसाद और पटना राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. दिनेश्वर प्रसाद की मदद से जलकुंभी भस्म तैयार किया गया। डॉक्टर राकेश ने इसका वैज्ञानिक अध्ययन किया। विभाग के एमटेक के छात्र निशांत कुमार और शशांक भूषण ने भी सहयोग दिया।